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अफ्रीका में तेजी से खत्म हो रहे हैं विशाल स्तनपायी जानवर- शोध

दि. 12.06.2023

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अफ्रीका में तेजी से खत्म हो रहे हैं विशाल स्तनपायी जानवर- शोध

मीडिया वी.एन.आय : 

ये सच है कि इंसानी गतिविधियां जंगलों और जानवरों के आवास को खतरे में नहीं डाल रही हैं, बल्कि पूरी तरह से खत्म ही करने का काम कर रही हैं. अफ्रीका जैसे महाद्वीप जो आज भी वन्य जीवन में काफी समृद्ध माने जाते हैं विलुप्त हो रही या विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने वाले जानवरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

लेकिन इन सब कड़वी सच्चाइयों के अलावा भी जीवाश्मों के शोध से अफ्रीका के जानवरों के इतिहास पर हुए अध्ययन में कई तरह के चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इनमें से एक बड़ा खुलासा यह है कि अफ्रीका में विशाल स्तनपायी जानवर तेजी से कम हो रहे हैं.

स्तनपायी जानवरों का इतिहास

बर्लिन के म्यूजियम फॉर नाटुरकुंडे और यूनिवर्सिटी की फैजल बीबी और अल्काला की जुआन एल कैनटालापिएड्रा के जीवाश्मों पर शोध के डजरिए अफ्रीका के विशाल स्तनपायी जीवों की इतिहास पर नजर डाली. उन्हें पिछले हजारों जीवाश्मों के आंकड़ों के जरिए इन स्तनपायी जानवरों के एक करोड़ सालों की जनसंख्या और आकार के आंकड़ों का पुनर्निर्माण किया.

आकार और जनसंख्या का संबंध

इस चुनौतीपूर्ण कार्य को करने के बाद शोध में पाया गया कि जानवर के आकार और जनसंख्या के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण संबंध होता है और संबंध चाहे जीवाश्म हो या आज के समुदाय हमेशा एक सा ही कायम रहता है. इस खोज ने यह सुझाया है कि चाहे एक करोड़ साल पहले की बात हो या फिर आज के युग के जानवर, एक ही मूल पारिस्थितिकी नियम हमेशा लागू होते हैं.

45 किलो से ज्यादा भारी जानवर

अध्ययन में पाया गया कि जो जानवर 45 किलो ज्यादा भारी होते हैं उनमें घटती जनसंख्या का आकार में इजाफे का संबंध पाया गया. इसका मैटाबॉलिक स्केलिंग से संबंध भी पाया गया जिसमें एक विशाल प्रजाति का जनसंख्या घनत्व कम होता है, वहीं उन्हीं की तरह की छोटी प्रजातियों में ऐसा नहीं होता है.

पाया गया है कि बड़े स्तनपायी जानवरों की संख्या के कम होने के साथ उनका आकार भी कम होता गया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

मध्य भार के जानवर कम ही रहे

शोधकर्ताओं ने पाया कि जो स्तनपायी जानवर 15 से 45 किलो के था उनकी प्रचुरता उम्मीद से कम ही निकली और ऐसा आज के जीवित और जीवाश्म मिले पुराने जानवरों दोनों में पाया गया. उनके मुताबिक इस अप्रत्याशित नतीजे की वजह यह थी वे सवाना आवास में ही इन प्रजातियों की कम संख्या थी. इस परिस्थितिकी तंत्र में बंदर और एंटीलोप जैसे जंगली जानवर कम ही मिलते हैं.

विशाल आकार के जानवर

इस अध्ययन में सबसे चौंकाने वाला खुलासा ये हुआ कि जब उन्होंने समय के हिसाब से आकार और प्रचुरता के बीच संबंध की पड़ताल की, तो पाय कि पहले, खासतौर से 40 लाख साल पहले के समुदायों में विशाल जानवरों की संख्या ज्यादा थी. इसके अलावा कुल जैवभार का अधिकांश हिस्सा भी विशाल आकार की श्रेणी के जानवरों में था.


बड़े जानवरों के कम होने के पीछे केवल इंसान ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि यह प्रक्रिया तो इंसानों के फैलने से भी पहले से चल रही थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

कहानी कुछ ज्यादा ही लंबी

पुरातन अफ्रीकी पारिस्थितिकी तंत्र में विशाल स्तनपायी जानवर बहुत ज्यादा हुआ करते थे. कुछ हाथी तो 10 टन से भी ज्यादा भारी हुआ करते थे. ऐसा आज देखने को नहीं मिलता. समय के साथ विशाल स्तनपायी जानवरो गायब होते चले गए और यह कमी जीवाश्मों में भी देखने को मिलती रही. यही वजह है कि आज छोटे और कम विविध समुदाय ही देखने को मिलते हैं. अध्ययन से इस धारणा को गहरा झटका लगा कि अफ्रीका में भारी वन्य जीवन की हानि के लिए केवल इंसान ही जिम्मेदार हैं.

अध्ययन में पाया गया है कि अफ्रीका में बड़े जानवरों में कमी इंसानों के फैलने से भी पहले, 40 लाख साल पहले ही शुरू हो गई थी और इसके लिए पर्यावरणीय कारण ज्यादा जिम्मेदार थे. इससे जैवभार वितरण में बदलाव भी एक कारक था. शोध जीवों, प्रजातियों और पर्यावरण के बीच के संबंधों के बारे में काफी कुछ नई जानकारियां मुहैया करने वाला सबित होगा. इससे भविष्य की संरक्षण की नीतियां बनने में भी मदद मिलेगी.


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