दि. 08.09.2023
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Global Change वैश्विक परिवर्तन का सूत्रधार बनता भारत...
India Becomes The Facilitator Of Global Change... G 20
मीडिया वी.एन.आय :
दिल्ली : आगामी 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन पर समूचे विश्व की निगाह लगी है। जी-20 के सदस्यों सहित कुल मिलाकर 43 देशों के प्रतिनिधि इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आ रहे हैं। यह पिछले 17 जी-20 शिखरों के मुकाबले नया कीर्तिमान है। भारत में इतनी बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एकत्रित होना संयोग की बात नहीं है।
यह मेजबान देश द्वारा वैश्विक शासन-संचालन के प्रति निष्ठा और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान हेतु प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पिछले वर्ष दिसंबर में जबसे भारत ने जी-20 का नेतृत्व संभाला तबसे देश के 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 60 से अधिक शहरों में 220 बैठकें आयोजित हो चुकी हैं।
विभिन्न देशों में जी-20 प्रक्रिया का अनुभव करने वाले राजनयिकों एवं विशेषज्ञों का मानना है कि बहुपक्षीय कूटनीति में जान फूंकने का श्रेय भारत के परिश्रम और लगन को दिया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारत ने ऐसे नाजुक दौर में वैश्विक नेतृत्व और समन्वय की बागडोर संभाली है, जब बहुपक्षवाद की सफलता पर ही सवाल उठने लगे थे। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और कड़वाहट के चलते विभिन्न देशों का एकजुट होकर साझा हितों और विश्व कल्याण के लिए कार्य करना दुर्लभ होता जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने मार्च में जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में चेताया भी था कि ‘बहुपक्षवाद संकट की स्थिति में है’ और ‘वैश्विक शासन विफल हो गया है।’
भारत की जी-20 अध्यक्षता ने विशेष रूप से बहुपक्षवाद को अधिक समावेशी और सहभागी बनाकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बहुपक्षवाद की धारा के प्रति विश्वास को नए सिरे से बहाल किया है। जी-20 का विस्तार करके 55 देशों वाले अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता देने की भारत की पहल ने यह उम्मीद जगाई है कि ‘कुलीन बहुपक्षवाद’ को ‘न्यायसंगत बहुपक्षवाद’ में परिवर्तित किया जा सकता है।
जी-20 देशों की आंतरिक औपचारिक बैठकों की शुरुआत से पहले ही भारत ने 125 अल्पविकसित देशों का ‘वैश्विक दक्षिण की आवाज’ के नाम से शिखर सम्मेलन बुलाया और उन वंचित देशों के परामर्श के आधार पर जी-20 की कार्यसूची बनाई। भारत की अध्यक्षता के अंतर्गत वित्तीय ऋण, महंगाई, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा उपलब्धता, डिजिटल और जलवायु न्याय जैसे विकासशील जगत के अहम सरोकारों को जी-20 के मुख्य एजेंडे में शामिल करने और उन पर यथासंभव सहमति बनाने का प्रयास हुआ।
बीते दिनों एक कार्यक्रम में मैंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से पूछा कि क्या भारत ने जी-20 के विकसित सदस्य देशों में पिछड़े देशों की आशाओं एवं आकांक्षाओं के बारे में समानुभूति उत्पन्न की तो उन्होंने कहा कि ‘हमारा प्रयास यह है कि अमीर देशों को दिखाएं कि परस्पर जुड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था में गरीब राष्ट्रों के उद्धार में ही अमीरों का फायदा है।’ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का यही आशय भी है। विकसित देश ‘सतत विकास’ और ‘सामाजिक न्याय’ की बातें तो करते हैं, लेकिन यह भारत ही है, जिसने उन पर दबाव डाला है कि वे जी-20 के माध्यम से आवश्यक संसाधन प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ें, ताकि ‘सबका विकास’ एक स्वप्न मात्र न रह जाए।
जी-20 की अध्यक्षता करने वाला देश सदस्य देशों के बीच आम सहमति और संयुक्त बयान के लिए बहुत मेहनत करता है। इस संबंध में भारत को ‘ग्लोबल नार्थ’ और ‘ग्लोबल साउथ’ के साथ-साथ ‘भू-राजनीतिक पश्चिम’ और ‘भू-राजनीतिक पूर्व’ के बीच पुल-निर्माता की भूमिका निभाने की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। रूस और पश्चिमी शक्तियों के बीच यूक्रेन युद्ध से जुड़ी तल्खी और चीन द्वारा जी-20 में खलल डालने की मंशा से चिंता के बादल मंडरा रहे हैं।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग दोनों की नई दिल्ली जी-20 शिखर सम्मेलन में अनुपस्थिति यही संकेत करती है कि दरार और फासले आसानी से मिटने वाले नहीं। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी का रुख सराहनीय है। उन्होंने जी-20 सदस्यों से अप्रासंगिक द्विपक्षीय भू-राजनीतिक मुद्दों को अलग रखने और टकराव के मुद्दों पर मिलकर काम करने का आग्रह किया है। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के तहत बुनियादी विकास संबंधी मामलों में व्यावहारिकता और विवेक की भावना के प्रवर्तन का प्रयास किया है, ताकि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त शक्तियों के सत्ता समीकरणों के खेल की कीमत समग्र वैश्विक परिवार को न चुकानी पड़े।
सवाल केवल भारत के जी-20 शिखर सम्मेलन के सफलतापूर्वक आयोजन का नहीं, बल्कि जी-20 जैसी संस्था की प्रासंगिकता और समस्याओं को सुलझाने की क्षमता का भी है। गत वर्ष जी-20 अध्यक्षता के दौरान इंडोनेशिया ने स्वयं को भू-राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसा हुआ महसूस किया था और बाली में आयोजित शिखर सम्मेलन में अंतिम क्षणों तक साझा बयान को लेकर अनिश्चितता रही।
भारत के पास सहमति बनाने की दो राह हैं। पहली यह कि जी-20 सदस्यों में अधिकांश के साथ हमारे मजबूत संबंध और सामरिक-आर्थिक साझेदारी है। पश्चिमी देशों और रूस, दोनों के साथ भारत के मित्रतापूर्ण संबंधों की बदौलत उन्हें मनाया जा सकता है कि हमारी मेजबानी का सम्मान रखना उनका कर्तव्य है। अन्यथा जी-20 में उनके खराब रवैये से भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हमारे तरकश में दूसरा तीर विकासशील देशों का है, जिनके हितों के विपरीत अगर चीन या पश्चिमी देश जाएंगे तो वे ‘ग्लोबल साउथ’ के नेतृत्व के हकदार कदापि नहीं बन सकते।
भारत के विकास केंद्रित जी-20 एजेंडे में अगर कुछ देश खेल बिगाड़ने वाले बन गए तो उनकी नैतिक छवि और विकासशील जगत में कारोबार एवं निवेश पर खासा असर होगा। जी-20 जैसे विविधता भरे अंतरराष्ट्रीय समूह में सौदेबाजी और मध्यस्थता तो अनिवार्य है। भारत के पास सकारात्मक परिणामों के लिहाज से पर्याप्त कूटनीतिक पूंजी है। भारत की अध्यक्षता ने जी-20 की दशा-दिशा और प्राथमिकताओं को बदलने का निश्चय किया है। इस संकल्प को सिद्धि में परिवर्तित करना असंभव नहीं।